बचपन से ही किसी कोने में घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाता रहता था। किताबों में पहाड़,नदी, झरने,किले आदि के चित्रों को घंटों निहारा करता था।किसी अखबार के पन्ने पलटता था तो जहाँ पहाड़ ,नदी,प्रकृति आदि के चित्र या यात्रा सम्बन्धित कुछ होता था वहीं नजर टिक जाया करती थी या ये कहें घुम्मकड़ी मन वही खोजता था।मैं उन तस्वीरों को जिया करता था सोचता था कि शायद कभी मैं भी यहां पहुंच पाऊँ।
पहाड़ हमेशा से मुझे आकर्षित करते आये हैं।लेकिन परिस्थितियां कभी अनुकूल नहीं रही,या उस समय साधन कम थे इसलिए स्वेच्छा से कहीं जाना संभव नहीं था।हमारी पांचवीं की किताब में एक पाठ हुआ करता था,नैनीताल के ऊपर जिसमें नैनी झील का चित्र होता था श्वेत श्याम ,और नैनी झील में तैरती हुई नौकाएं सपनों की दुनिया के जैसे लगती थीं।
बहुत सी हिंदी फिल्मों व गीतों का फिल्मांकन भी नैनीताल में हुआ है जिसनें मुख्य हैं
*सुनील दत्त, माला सिन्हा अभिनीत गुमराह जिसका गीत है "आजा आजा रे तुझको मेरा प्यार पुकारे"
*वहीदा रहमान अभिनीत शगुन जिसका गीत "पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है"
*शशि कपूर अभिनीत वक्त जिसका गीत"दिन हैं बाहर के तेरे मेरे इकरार के"
*राजेश खन्ना ,आशा पारेख अभिनीत कटी पतंग जिसका गीत "जिस गली में तेरा घर ना हो बलमा"
*नसीरुद्दीन शाह अभिनीत मासूम जिसका गीत "तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं"
*ऐसी बहुत सी फिल्में हैं जिनमें नैनीताल को बहुत अच्छे से फिल्माया गया है-सिर्फ तुम, कोई मिल गया,चाँद के पार चलो आदि फिल्में भी नैनीताल की खूबसूरती लिए हुए हैं।
पहले घूमना फिरना अमीरों का शौक समझा जाता था यानि उनका एकाधिकार था। यूँ भी कह सकते हैं घूमना फिरना समय और धन की बर्बादी है(बहुत लोगों के आज भी यही विचार हैं)उस समय कोई नैनीताल जाता था वापस आकर कहता यहाँ तो बहुत गर्मी है वहाँ तो बहुत सर्दी है बर्फ है कोहरा है।उनकी बात सुनकर ताज्जुब होता कि एक ही देश में एक ही समय पर दो अलग अलग मौसम कैसे हो सकते हैं ?एक जिज्ञासा मन में घर कर गयी कि क्या यह संभव है ?लगता था कि लोग यूँ ही बोलते होंगे फिर धीरे-धीरे मैदान व पर्वतीय क्षेत्रों का अंतर भी समझ आने लगा।
नैनीताल मन में बस सा गया ।काफी जगह बहुत दूर दूर भी घूमने गया लेकिन नैनीताल जाने का कभी अवसर नहीं मिल पाया।उम्र बढ़ी जानकारी बढ़ी तो अब काम था इस सपने को मूर्त रूप देने का। फिर कई बार दोस्तों के साथ प्रोग्राम बना पर हर बार असफल ।एक बार अपने परम मित्र जितेंद्र शर्मा जी के परिवार को साथ लेकर,सपरिवार हमने भी जाने का निश्चय किया। सब कुछ निर्धारित हो गया उसी दौरान भारी बारिश की चेतावनी आ रही थी और हमारा प्रोग्राम फिर से बनते बनते बिगड़ने की कगार पर आ गया।फिर भी वह समय आया और अगले दिन सुबह जाने का प्रोग्राम बना।
यह जून 2014 की बात है रात भर नींद नहीं आई कि कब सुबह हो उस दिन रात भी बहुत बड़ी लग रही थी। इससे पहले नैनीताल के नाम पर कई प्लान धराशायी हो चुके थे तो शंका होना लाजमी था।सुबह जल्दी उठे बच्चों को तैयार करके 6 बजे हम अपनी कार में सवार हो चल दिए नैनीताल की ओर ।आप यकीन नहीं करेंगे मन में इतनी उमंग और खुशी की जो कभी बचपन में सोचा था वह आज इस उम्र में आकर पूरा होने को है।मन में इतनी खुशी कि हर पल लगता बस उड़ के नैनीताल पहुँच जाऊँ। नैनीताल जाने के दो रास्ते हैं एक मुरादाबाद से टांडा, बाजपुर ,काला ढूँगी होते हुए और एक रामपुर, रुद्रपुर,हल्द्वानी, काठगोदाम होते हुए।हम मुरादाबाद से बाजपुर टांडा वाले रास्ते पर निकल गए।बाजपुर पहुँचकर कुछ रिफ्रेशमेंट लिया और आगे के सफर पर चल दिये।यहाँ के बाद रास्ता बहुत शानदार था जंगलों के बीच से गुजरती हुई सड़क( ये जंगल जिम कॉर्बेट पार्क का ही हिस्सा हैं)यह रास्ता आगे जाकर कालाढूंगी जाकर मिलता है जिसे छोटी हल्द्वानी भी कहते हैं।यहाँ एक तिराहा है जहाँ से एक रास्ता सीधा हल्द्वानी के लिए निकल जाता है बाएं मुड़कर नैनीताल के लिए।इसी तिराहे से कुछ 1 या 2 किमी.पहले एक रास्ता रामनगर को जाता है।
छोटी हल्द्वानी जिम कॉर्बेट साहब का घर भी है जिसे म्यूजियम बना दिया गया है।हम यहाँ थोड़ी देर रुककर ,बाएं मुड़कर नैनीताल के लिये चल दिये।शुरूवात ही चढ़ाई से होती है।शानदार रास्ते ,नागिन की तरह बलखाती सड़कें रोमांच पैदा कर रही थीं। उस पर गाड़ी सरपट दौड़ी चली जा रही थी। मन मस्तिष्क उस बचपन के सपने को जीने के लिए लालायित था।एक जगह हमने चाय पीने के लिए गाड़ी रोकी,जहाँ से हमें दूर आर्यभट्ट अनुसंधान केंद्र जो बहुत ऊँचाई पर बना है दिखाई दे रहा था यानि हम नैनीताल के आस पास ही पहुँचने वाले थे।साफ मौसम में हल्की ठंडक भी शुरू हो गयी थी।मौसम सुहावना हो चला था।
आगे बढ़े तो सबसे पहले हमें जो खूबसूरत जगह दिखी वो थी खुर्पाताल।जिसकी आकृति गाय के खुर(पैर)के जैसी दिखती है दूर से देखने पर इसलिए इसे खुर्पाताल कहते हैं।पास ही छोटा सा सड़क किनारे मनसा देवी के नाम से मन्दिर भी है। शानदार नजारे देख एक बार को तो आँखे खुली की खुली रह गईं।मैं प्रकृति के सौंदर्य का रसपान कर रहा था साथ ही अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा था।मनभावन दृश्यों के साथ कुछ समय यहाँ बिताकर आगे चल दिए ।जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ती जा रही थी नजारे भी अद्भुत रुप लेते जा रहे थे और खुशी का पारावार नहीं था।इसी रास्ते पर सरियाताल एक जगह है उसी से निकला एक झरना है।आगे चले तो लवर्स पॉइंट जो रोड से थोड़ा नीचे उतरकर है।


नैनीताल में घुसते ही पहला स्वागत हुआ हमारा जाम से।क्योंकि जून का महीना रविवार का दिन था,लगता जैसे सब कुछ थम सा गया हो।मेरे सपनों की जगह ऐसी तो नहीं थी।लग रहा था जैसे किसी मेट्रो सिटी में आ गये हों।ट्रैफिक पुलिस के कारनामे ने हमें जहाँ से घुसे वहीं लाकर पटक दिया।हालात को देखते हुए सबसे पहले हमने रात्रि विश्राम के लिए जगह देखने का विचार बनाया क्योंकि बाद में समस्या होने की पूरी संभावना थी। नैनीताल के दो मुख्य भाग है जिन्हें मल्लीताल( ऊपर वाला हिस्सा )दूसरा तल्लीताल (नीचे मॉल रोड वाला हिस्सा) के नाम से जाना जाता है।जहाँ चाह वहाँ राह मल्लीताल में हमें हमारे मनमुताबिक जगह मिल गयी ।दो बड़े कमरे सब सुविधा युक्त और परिवार के हिसाब से बिल्कुल उपयुक्त।हमने अपना डेरा वहीं जमा दिया।कुछ देर आराम करके पैदल ही नैनीताल घूमने निकल पड़े।
शाम के समय सबसे पहले हम नैना देवी मंदिर दर्शनों के लिए गए जो झील किनारे ही स्थित है।यहाँ माता जी के नेत्र गिरे थे जिसे नयना देवी या नैना देवी के नाम से जाना जाता है उन्हीं के नाम पर ही इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा।वहाँ से जो झील का नजारा देखा एक बार को तो अवाक रह गया यही तो देखने आया था मैं ।यही झील तो बचपन से मन में समायी थी,इसे ही तो देखा करता था।शाम के धुँधलके में हम वही मंदिर प्रांगण में ही बैठ गए ।एक तरफ मन्द्विम स्वर में भजन चल रहे थे एक तरफ झील की लहरें मंदिर की दीवारों से टकराकर छप -छप करती हुई भजन के साथ ही थाप मिला रही थीं।धीरे धीरे रात गहराती जा रही थी प्रकाश पुंज अपनी आभा बिखेरते जा रहे थे ,समस्त ताल नगरी एक अलग ही रंग में रंग गयी।ताल में पड़ता प्रतिबिंब एक बार को आसमान में टिमटिमाते तारों के जैसा अनुभव करा रहे थे।काफी समय यहाँ व्यतीत किया।मन भर उन नजारों को अपनी यादों में कैद किया।



अगले दिन सुबह जल्दी उठे तो मौसम बहुत सुहावना था,हवा में हल्की ठंडक और ताजगी थी।तैयार होकर निकल पड़े अपने अगले सफर पर जो नैनिताल में ही होना था।सबसे पहले हम हिमालय व्यू पॉइंट के लिए निकले।हिमालय व्यू पॉइंट नैनीताल से किलबरी रोड पर 5 से 7 किमी.है ।गाड़ी आराम से पहुँच जाती है तो हुजूम लगना लाजमी था पर नजारा बहुत दिलकश था।
रास्ते में नैनी झील पॉइंट भी पड़ा जहाँ से नैनीझील एक आँख की तरह दिखाई देती है।इसमें तैरती नौकाएं कीट पतंगों जैसी लग रहीं थीं।वहाँ से वापिस आकर केव गॉर्डन देखा जिसमें चट्टानों के बीच गुफाएँ बनी हुईं हैं कई जगह बहुत संकरी तो कई जगह बहुत विशाल यहाँ भय मिश्रित रोमांच का अनुभव हुआ।दोपहर हो चली थी झील के किनारे किनारे सड़क है। झील का अवलोकन करते हुए चलते रहे ,झील में तैरती रंग बिरंगी नौकाएं बहुत सुन्दर लग रही थीं।मौसम साफ था और चटक धूप भी खिली थी जिसकी वजह से हर रंग चमकदार और मनमोहक लग रहा था।जिसका वर्णन शब्दों में करना मुश्किल है।